हमारे घर थे वो
दीवारें सजायी थी उन्होंने
कोई तीसरा त्यौहार लग रहा था
वो सब जो वो थे हम बनना चाहते थे
घर में कोई हमेशा रहता था अब
कहीं देखा हुआ या सुना हुआ
अब टीवी भी बस बड़े लोग देखते थे
किसी ने उनसे कहा था बस अब कुछ दिन और
पहले भी सुन चुके थे हम झूठे दिलासे
हमारे अपने जलाये जा रहे थे कहीं दूर
हमे एक करने के लिए
और इंसानियत किताबों से निकल के उनके गले में बैठी थी
वो महान थे हमेशा से
सिर भी ऊँचे थे उनके, बादलों से
बारिश उन्होंने करायी थी पिछली, हमारे घरों में
और एक दिन सुबह, हम जागे रोज की तरह
हमारी उँगलियाँ रंग रहे थे वो, हम सब की उँगलियाँ
खुश थे वो, हमेशा की तरह
जाने से पहले
हमने नाकाम कोशिश की थी, फिर से
उँगलियाँ धो कर
वक्त में डुबो के गए थे वो ।।