Friday 9 October 2015

सिर भी ऊँचे थे उनके, बादलों से


हमारे घर थे वो
दीवारें सजायी थी उन्होंने
कोई तीसरा त्यौहार लग रहा था

वो सब जो वो थे हम बनना चाहते थे
घर में कोई हमेशा रहता था अब
कहीं देखा हुआ या सुना हुआ

अब टीवी भी बस बड़े लोग देखते थे
किसी ने उनसे कहा था बस अब कुछ दिन और
पहले भी सुन चुके थे हम झूठे दिलासे

हमारे अपने जलाये जा रहे थे कहीं दूर
हमे एक करने के लिए
और इंसानियत किताबों से निकल के उनके गले में बैठी थी

वो महान थे हमेशा से
सिर भी ऊँचे थे उनके, बादलों से
बारिश उन्होंने करायी थी पिछली, हमारे घरों में

और एक दिन सुबह, हम जागे रोज की तरह
हमारी उँगलियाँ रंग रहे थे वो, हम सब की उँगलियाँ
खुश थे वो, हमेशा की तरह
जाने से पहले

हमने नाकाम कोशिश की थी, फिर से
उँगलियाँ धो कर
वक्त में डुबो के गए थे वो ।।



Friday 2 October 2015

जीवन


जीवन इतना कठिन है क्या, या हो गया है।
लोग कहते हैं...था नहीं, हो गया है।
ह्रदय को झकझोर देने वाली घटनाएं हो रही हैं।
सही और गलत का फैसला करना मुश्किल होता जा रहा है
जो आज प्रेरणाश्रोत लग रहा है अगले ही क्षण मन में उसके लिए सवाल होते हैं।

प्यार करते समय और खजूर खाते हुए भी


आँखे लगायी गयी हैं मुझे
या नज़ारे बदले हैं किसी ने, छुपकर
ऐसेे देखूंगा तुम्हे, कि जलने लगोगे तुम
मैंने जलाये हैं कई घर और गलियां
कई पुर और नगर
और समेटी हैं तारीफें
मुझे बनाया गया है जलाने के लिए
तुमने बनाया है मुझे हर वक़्त, सुबह शाम
अंदर बाहर सोते जागते
प्यार करते समय और खजूर खाते हुए भी